****
मौन हुए अधरों से अब संवाद होना चाहिए
समुन्नति में बाधक पीर वर्जनाएं क्यों जीएं
आयुहीन हो निहारिका संघात होना चाहिए -
कभी संहिता की कोख न संशय आकार ले
हर हृदय में प्रेम और विस्वास होना चाहिए
क्षितिज पर हों पाँव के पुष्ट आधार निर्मित
उड़ान के लिए मुक्त आकाश होना चाहिए -
उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-03-2015) को "मायूसियाँ इन्सान को रहने नहीं देती" (चर्चा अंक - 1921) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-03-2015) को "मायूसियाँ इन्सान को रहने नहीं देती" (चर्चा अंक - 1921) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
प्रेरक शब्द।
एक टिप्पणी भेजें