रविवार, 29 मार्च 2015

वसीयत

दुख हुआ तेरी वसीयत पढ़कर ,
हमने सोचा था दौलत का अंबार होगा
कामिल इंकलाव लिख गए हो -
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तुमको होगा मलाल अपने दुश्मनों से
जो मेरे दोस्त निकले ,
यकीनन तुम अपना समय बर्बाद कर गए हो
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घर बनाने की जगह उम्र जेल में गुजारा
तुमको रोटी न मिली
मुझे नसीहतें बेहिसाब दे गए हो -
उदय वीर सिंह

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