रंग बरसे- जब बरसे - रंग बरसे
****कब होली ने आँगन छोड़ा
कब चोली ने दामन -
कब फूलों ने खुशबू छोड़ी
कब रंगों ने अपनापन -
कब गीतों को स्वर ने छोड़ा
कब फुहार ने सावन -
ऋतु बसंत का खुला खजाना
छोड़े प्रीत कब फागन -
लालित्य ललीके खुले बंद
सजनी छोड़े कब साजन -
अंग प्रत्यंग रस रंजन ढलता
सुघर सौम्य मनभावन -
2 टिप्पणियां:
हो ली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (08-03-2015) को "होली हो ली" { चर्चा अंक-1911 } पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर
होली की मंगलकामनाएं!
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