गुरुवार, 20 अगस्त 2015

अपने गुनाहों का --

अपने गुनाहों का ,हिसाब दे न पाये हम 
उतना  ही बाकी है ,जितना  चुकाए हम -
जो भी मिला जैसे मिला करता सवाल ही 
चादर उधड़ती रही जितनी बीन पाये हम -
लक्षमन रेखाएँ टूटी कसमों के तार भी 
जीवन की खातीर मौत से निभाए हम -
वफा जो मुकर्रर खता हर बार हम करेंगे 
डूबती निगाहों को अपनी दे आए हम -
रिश्तों ने छोड़ा घन आई घनी शाम जब 
उम्मीदों का दीवा राह उनकी जलाए हम -
मोहब्बत है पाक उतनी जन्नत नहीं है 
तुमने कही न कही अपनी सुनाये हम -
सहरा या वादियाँ वो बिसरीं न वीथियाँ  
याद उतनी आयीं ,जितनी भुलाए हम -
गमों ने हमारा साथ दिल से निभाया है 
उतने ही आए आँसू जितना खिखिलाए हम 

उदय वीर सिंह 

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