जो हर दौर में ठहरने की जगह देता है -
वजूद तेरा भी है अगर जर्रा ही क्यों न हो
मीरो पीर बनने की कामिल वजह देता है -
छोड़ जाएंगे पुराने कपड़ों की तरह राही
वो हलफ बन कर मंजिलों फतह देता है -
जब तक दम है परों में है परवाज़ कायम
वापसी में आखिर वो शाखों-सतह देता है -
उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-08-2015) को "आया राखी का त्यौहार" (चर्चा अंक-2082) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक
रक्षाबन्धन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
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