मेरे दिन बहुरें न बहुरें ...
सीने दो जज्जबातों को
एक दिन पोटल बन जाएंगे -
सिर्फ उजड़ी एक बस्ती ही तो
उनके होटल बन जाएंगे -
मेरा 'आज 'अतीत बनेगा
उनके कल बन जाएंगे -
न उड़ पाएंगे आश पंखेरू
किसी गह्वर जा सो जाएंगे -
मेरे दिन बहुरें न बहुरें
उनके मसले हल हो जाएंगे -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-10-2015) को "स्वयं की खोज" (चर्चा अंक-2118) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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