सोमवार, 4 जनवरी 2016

रस्मी होकर रह गए ....

हम रह गए अपने घरों मे ही कैद
मुबारकबाद रश्मी होकर रह गए -
तराशते रहे सियासती मूरत,न मिली
मेरे हाथ जख्मी होकर रह गए -
कितनी बदल जाती है सूरत वादों की
अल्फ़ाज़ तिलस्मी होकर रह गए -
अफसोस करते आँखों में सैलाब लेकर
जज़्बात में मजहबी होकर रह गए -

उदय वीर सिंह


1 टिप्पणी:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 05 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!