मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

बांधे बेटा पीठ

बांधे बेटा पीठ शीश पर ईटा
भूख नदी तट की  पनिहारन
कुछ कर्ज प्रसव के पूर्व लिया
कुछ वसन व्याधि वर के कारण-
सिल करके अधरों की पीड़ा 
आशा की चादर बुनती है -
हरने को जीवन का वेदन 
निज शीश ईंट को ढोती है -b
कुछ यतन दूध का करती है 
चुप चाप दंश को सहती है 
गोंद में बालक को होना था 
वह पीठ बंधा अकुलाता है 
जिसमें पूत किलकारी देता  
उस उरमें राख भर जाता है 
गिरी ईंट जो कर से छूटी
परिणाम सोच कर डरती है -
सूखी छाती दूध पलायित 
भूखा पेट जले  अंगारों से 
आंखों से गंगा यमुना सूखी 
ऊंची पीर हुई पहाड़ों से -
टीसता वेदन प्रसव अभी 
समनार्थ भूख श्रम करती है
बदली फेरों वाली धोती
बदले हैं शीत बसंत कई 
पैबंदों ने आकर घेरा डाला 
सूती कुर्ती अब जर्जर हुई -
 है ठंढा चूल्हा बटलोई खाली 
कुछ प्रश्न निलय से करती है
भाग्य-प्रबल, पूर्व का लेखा 
दया- पात्र जब तक याचन 
जब शब्द निकले उदद्गारों में 
ये जग कहता भठिहारन 

उदय वीर सिंह 




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