बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

जले आग कहीं तो चूल्हों मे जले -

न हृदय मेँ जले , न उदर मेँ जले
जले आग कहीं तो चूल्हों मे जले -
दीप मस्जिद मेँ जले मंदिर मेँ जले
जले पहले जो कहीं वो घरों मेँ जले -
रंग काँटों का भी वैसे बुरा नहीं होता
खुशबू मिले कहीं तो वो फूलों मेँ मिले -
किताबों मेँ मिले न खानकाहों मेँ मिले
इल्म का दर माँ की पनाहों मेँ मिले -

उदय वीर सिंह



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