पाँव ठहरें तो ठहर जाएँ छांव ठहरेगी कहाँ - किश्ती तो किनारों का सबब है दरिया ठहरेगी कहाँ - जख्मों का चलन अपना है घटा बरसेगी कहाँ - अच्छा है आँखों की जुबां नहीं दास्तां वो कहेगी कहाँ - उदय वीर सिंह
उदय वीर जी आप ने बहुत ही सही बात कही है आज के समय में समय भुत तेजी से आगे निकल रहा है जो ठहर वो पीछे रह जायेगा आपकी ये कविता बहुत ही खूबसूरत है आप इस तरह की कविताएं शब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं.......
6 टिप्पणियां:
एक छोटी सी भावपूर्ण रचना। अच्छी लगी।
सुंदर।
उदय वीर जी आप ने बहुत ही सही बात कही है आज के समय में समय भुत तेजी से आगे निकल रहा है जो ठहर वो पीछे रह जायेगा आपकी ये कविता बहुत ही खूबसूरत है आप इस तरह की कविताएं शब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं.......
एक टिप्पणी भेजें