सोमवार, 4 जुलाई 2016

झूठे शान श्यापों पर ....

खेतों में बंदूकें उगतीं
बम विद्यालय बना रहे
विषबेल पनपती श्रद्धालय
धर्मालय नफरत बढ़ा रहे
आँखों के चश्में बदल रहे 
स्वप्न रंगीले दिखा रहे
मेरा पथ है रब का पथ
वीर अशेष झूठा बता रहे
बर्तमान की दशा दिशायेँ
क्या हो इसका अर्थ नहीं
झूठे शान श्यापों पर
मानव से मानव लड़ा रहे -
न्याय प्रेम सम्मान कहीं
सब दलगत होते दिखते हैं
वेदन में दुखिया चिल्लाता
निर्दय कर ग्रीवा दबा रहे
जिसकी लाठी उसकी भैंस
हकपसंद शमशान गया
संविधान से ऊपर होकर
सूरज को दीवा दिखा रहे -
उदय वीर सिंह

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