रुठती
है संचेतना तो,
विकार
देती है..
जागती है संवेदना तो,
संस्कार देती है ..
राहों में खायी ठोकर ,
विचार देती है ..
विनम्रता सफलता को,
आधार देती है ...
सत्य-निष्ठां शौर्यता,अन्याय को,
प्रतिकार देती है ...
हृदय की विशालता मनुष्यता को
आकार देती है
स्नेह की सबलता घृणा को भी
प्यार देती है... |
-- उदय वीर सिंह .
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