रविवार, 12 फ़रवरी 2017

पथ मिले प्रयाण के

पथ मिले प्रयाण के तो पैर कट गए
गंतव्य का प्रकाश छिपा बादलों मेँ है 
अंतहीन वेदना दिशाहीन चेतना हुई
विकल्प भी कहीं बीच दलदलों मेँ हैं -
शिलाओं पर बने निशानअति मौन हैं
भर गए हैं कीच अतिवादिता की धूल से
प्रक्षालनार्थ कौन है सून्यता प्रखर हुई
प्रबोधिनी प्रभा कहीं सोई आँचलों मे है -
उदय वीर सिंह

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