गुरुवार, 2 मार्च 2017

बोई पीड़ा की फसलों से

जलते अंतर्मन से कैसे 
 अमृत वर्षा हो पाई -
अभिशप्त हृदय की भाषा कब 
मधुर गीत में ढल पाई 
बोई पीड़ा की फसलों से 
यश खुशहाली कब आई -
वैद्य हकीम बसते बहुतेरे
पीर पर्वत सी हो आई -
घाट देवालय, मधुशाला के भी 
 लगी प्यास बुझ पाई -

- उदय वीर सिंहb

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