मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

बेटी के रोने की खबर फिर से आई है

बेटी के रोने की खबर फिर से आई है
बीती है सदियाँ कितनी अब भी पराई है -
खंजर हुए हाथ आँचल विष का कटोरा हुआ
ममता की आँखों में मौत उतर आई है -
हाथ हथकड़ियाँ पग बेड़ियाँ अनेकों हैं
धरती का बोझ मानो बेटी बन आई है -
फिसला जो पैर माफी मिलती न बेटी को
आशीष वाले हाथों ने जिंदगी जलायी है

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