सोमवार, 31 जुलाई 2017

मंदिर कभी मस्जिद ठहरता रहा -

मेरी शाम मेरी सुबह से जुदा रही
मंदिर कभी मस्जिद ठहरता रहा -
कभी तलाश न की साहिल की
मौजों के साथ बहता रहा -
मैंने पूछा नहीं कभी अमीरो फकीर से 
जो कहा दिल ने लिखता रहा -
मुख्तलिफ़ गुलों की कत्लगाह देखी है
मुस्कराने का ईनाम मिलता रहा -
बंधी हर कदम रश्मों में जिंदगी
जो मिली जितनी मिली जीता रहा -
उदय वीर सिंह

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