मेरी शाम मेरी सुबह से जुदा रही
मंदिर कभी मस्जिद ठहरता रहा -
कभी तलाश न की साहिल की
मौजों के साथ बहता रहा -
मैंने पूछा नहीं कभी अमीरो फकीर से
जो कहा दिल ने लिखता रहा -
मुख्तलिफ़ गुलों की कत्लगाह देखी है
मुस्कराने का ईनाम मिलता रहा -
बंधी हर कदम रश्मों में जिंदगी
जो मिली जितनी मिली जीता रहा -
मंदिर कभी मस्जिद ठहरता रहा -
कभी तलाश न की साहिल की
मौजों के साथ बहता रहा -
मैंने पूछा नहीं कभी अमीरो फकीर से
जो कहा दिल ने लिखता रहा -
मुख्तलिफ़ गुलों की कत्लगाह देखी है
मुस्कराने का ईनाम मिलता रहा -
बंधी हर कदम रश्मों में जिंदगी
जो मिली जितनी मिली जीता रहा -
उदय वीर सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें