रविवार, 3 सितंबर 2017

कुछ और नक्कारे चाहिए

अभी भीड़ कम है 
कुछ और नारे चाहिए 
शोर अभी कम है 
कुछ और नक्कारे चाहिए 
चार दीवारोंछट मुकम्मल है 
बांटने को कुछ और दीवारें चाहिए 
शिकार किसका है मत पूछ 
कुछ और हरकारे चाहिए 
ये सब जानते हैं तलवारों ने 
जुल्म किया है 
कुछ और तलवारें चाहिए -
सूखी हुई झील कितनी सुनी है
 हम ईसे आंसुओंसे भरेंगे 
कुछ और शिकारे चाहिए -
विरसती नहीं लगता है शहर 
कुछ और मीनारें चाहिए -
उदय वीर सिंह  


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