कितना वसूलते कर सुखी रगों से
आत्मा वैद्य टूर गए बीमार रह गया
खरीददार न रहे बाजार रह गया
चुकाने वाले न रहे उधार रह गया -
नामलेवा न रहा घर परिवार में कोई
पर वसूली का पूरा अधिकार रह गया -
बंद हो गईं मिलें खाली मिल का मैदान
वो दिवालिया हो गईं समाचार रह गया
सिमट गए हाथ
बिखर गए सपने
मालिक आबाद मुलाजिम बर्बाद रह गया
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
प्रभावी रचना..
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