रविवार, 31 दिसंबर 2017

ज्वलंत

रुखसत होते हुए वर्ष 2017 की संवेदना व प्रणाम मित्रों !
*** ज्वलंत ****
बरगद गमलों में ह सियासत जुमलों में है
जानवर शहरों में आ गए देवता जंगलों में
 राजा को गद्दी की फिक्र पियादा षडयंत्रों में 
जवान अपनी प्रतिरक्षा में शत्रु हमलों में है -
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आवाम को सिर्फ तसल्ली चाहिए जी ही लेगी
किसान भूखा खेत वीरान रोटी महलों में है
गरीबी रैम्प पर कैट वाक करती हुई मिली
संगतराश सड़क पर संगसार राजमहलों में है -
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भटक रही है इंसानियत इंसाफ जख्मी है
बसी हंसी होठों पर खुशी बुज़दिलों में है -
रोग शैया पर ये देश कितने लगे गिन न पाए
अनाड़ी तीमारदार वैद्य कहीं उत्सवों में है -
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बाप सुबह घर से निकला तो निवाला लेकर
आएगा आज मालूम नहीं बच्चे इंतजार में हैं
बेटी जवान घर से निकली सुरक्षित लौटेगी
बेटा रोजगार पाएगा ख्वाब दूर मंजिलों से है -
उदय वीर सिंह




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