थाली में चाँद को माँ ने उतारा है
हारी हुई जींद को विजेता पुकारा है
आँखों में आए निराशा के हंजू जब
ममता की गोंद दे नेह से दुलारा है
रब भी न देता माफी किए गुनाहों की
हारे जुआरी को भी माँ का
सहारा है
देखा जमाने ने तिरछी निगाहों से
करुणा का भाव ले नेह से निहारा है -
जर्द हुए पातों को डालियों ने छोड़ा जी
जीवन सारा देके निज फुनगे
संवारा है
जर जमीन
जोरू दौर छोड़ देते हाथ जी
मिट कर भी कोख को रास्ता दिखाया है -
उदय वीर सिंह
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