कर देकर भी मूल न पाया
कंचन की आशा थी अपनी
हाथ में पीतल कांसा है -
कैसी जीवन की भाषा है
पुष्प है तो अभिलाषा है
अवधि पतझड़ की दीर्घायु न हो
कैसा बसंत जिज्ञाषा है -
अलका घन की सामग्री
कब गिर जाए जाने कौन
कूँची रंग मसि कलम जलेंगे
सर्जक की घोर निराशा है -
निकलेगा चाँद ईद मनेगी
आशा ही नहीं विश्वास प्रबल था
नील गगन के अनंत लोक में
गहरा पसरा सन्नटा है -
पावस में ज्वाल बरसता है
ये ऋतु परिवर्तन या अभिशाप
किंचित अमिय अनंग संग वैर हुआ
भर विष घट अकुलाता है -
उदय वीर सिंह
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