शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

जो बोया सो काट न पाया

जो बोया सो काट पाया 
कर देकर भी मूल पाया 
कंचन की आशा थी अपनी 
हाथ में पीतल कांसा है -
कैसी जीवन की भाषा है 
पुष्प है तो अभिलाषा है 
अवधि पतझड़ की दीर्घायु हो 
कैसा बसंत जिज्ञाषा है -
अलका घन की सामग्री 
कब गिर जाए जाने कौन 
कूँची रंग मसि कलम जलेंगे 
सर्जक की घोर निराशा है -
निकलेगा चाँद ईद मनेगी 
आशा ही नहीं विश्वास प्रबल था 
नील गगन के अनंत लोक में
गहरा पसरा सन्नटा है -
पावस में ज्वाल बरसता है 
ये ऋतु परिवर्तन या अभिशाप 
किंचित अमिय अनंग संग वैर हुआ 
भर विष घट अकुलाता है -
उदय वीर सिंह





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