रविवार, 23 सितंबर 2018

लौट, गुजरी बिसरी शताब्दियों को देखता हूँ

लौट, गुजरी बिसरी शताब्दियों को देखता हूँ 
पिछले पायदानों पर ही मौजूदगी है आज तक
इस आजाद भारत की उपलब्धियों को देखता हूँ - 
दरबारी,दलाल कल भी आनंद में थे आज भी हैं 
कालाहांडी भूखी नंगी आवाम व बस्तियों को देखता हूँ -
परिवर्तन हुआ है बेशक दिखता भी है उदय
सत्ता गोरों से कालों की गतिविधियों को देखता हूँ -
शिक्षा सुरक्षा समानता के ग्रंथालय ,ग्रंथी बहुत हुए
आज भी आदिमता की पैरोकारी कुरीतियों को देखता हूँ
उदय वीर सिंह

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