सोमवार, 24 सितंबर 2018

त्याग दरबारी गायन को

त्याग विलास की अभिलाषा
त्याग दरबारी गायन को
त्याग सुमन के सेज स्वप्न
पी अमरतत्व रसायन को -
घायल घाव अनेक भरे तन
यद्पि तन कृशकाय अबल
आज मृत्यु कल द्वार मुक्ति के
प्राणित कर शापित मन को-
उन्माद नहीं संवाद सृजन के
समतल क्षितिज मर्यादा वांछित
तज वैर रार संहार के शंसय
जनहीत प्रस्तर कर अन्तर्मन को -
तिमिर घोर घन क्षार गगन
चपला षडयंत्री अविरल है
चलना होगा ले दीप भीष्म बन
पीना होगा विष आयन को -
पढ़ कालखंड के साक्ष्य, रचो
तज लोभ मोह पक्ष के दंश दूर
गिरी पयोधि नद जाग्रत हैं
रच नव समीर वातायन को -
उन्माद नहीं संवाद सृजन के
समतल क्षितिज मर्यादा वांछित
तज वैर रार संहार के शंसय
जनहीत प्रस्तर कर अन्तर्मन को -
उदय वीर सिंह

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