एक आम आदमी -
का दर्द परिहास का किस्सा बन
जाता है
प्रेम राजनीति का हिस्सा बन जाता है
कोई लगा कर आग उसके घर में कातिल
हमदर्द ही नहीं फ़रिश्ता बन जाता है -
रोटी भावनाओं की आग पर सेंकी जाती
है
भूख का दाना योजनाओं में पीसा जाता है
स्वच्छ पानी को तरसता रहा जीवन भर
रुखसती के समय गंगा जल दिया जाता है -
मकान का सपना संजोए सोता है खुले नभ
सपनों के गुल बोते बोते गुलिश्ता बन जाता है
कितना सुरक्षित है आम आदमी कि पकड़ो
निचोड़ो जब चाहो खून कितना सस्ता हो जाता है -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
यही सच है।
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