रविवार, 21 अक्तूबर 2018

मत मारो मन के राम...


मत मारो मन के राम को ,
रावण जिन्दा हो जाता है ,
पंछी दरख़्त तो नहीं होते
बृक्ष ,परिंदा हो जाता है -

आश टूटती है प्रेम की
अपने ही पराये होते जाते
घोर तमस में आँगन होता
मानस दरिंदा हो जाता है -

पाठशाला,क्रंदन शाला होती
नैतिकता विलुप्त हो जाती है
रोती दया करुणा किसी गह्वर
क्षमा प्रेम शर्मिंदा हो जाता है -

हाथ आशीष के ज्वाल बरसते
विश्वास आश दुर्लभ होते
घात प्रतिघात की प्रत्यासा में
गौरव गन्दा हो जाता है -

अनाचार कदाचार ,प्रश्रय पाते
व्रत संकल्प कुमार्ग में ढल जाते
ममता के हाथ पड़ते छाले
औषधि ,सौदा, मंदा हो जाता है -

उदय वीर सिंह






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