रविवार, 2 दिसंबर 2018

दुखिया पालनहार


जब जब रोया है धरती-पुत्र
तब तब धरती रोई है
रख कर हृदय पर पत्थर निज
उनके घाव आंसू से धोई है -
उनके वेदन बंदूकों से हरने वालों
तख़्त विलास महलों में रहने वालों
रगों में खून तुम्हारे तब तक है
जबतक कायम किसान का मस्तक है -
सींच पसीने खून से अपने
अपने वेदन भुल कर सपने
आँखों में भरकर सृजन संवेदना
त्याग व्यथा जीवन के अपने
फटी विबाई तन अधनंगा
रत निरंतर कर्म में अपने
स्वांस तुहारी तबतक है
जब तक किसान की दस्तक है -
वो क्या देता है सृष्टि, जन को
तुम क्या देते हो प्रतिदान उन्हें
जो अन्न वस्त्र औषधि उपजाता
देते मौत उपेक्षा अपमान उन्हें
मिट गए कोटि सत्ता दरबारी
मत छेड़ किसान ही रक्षक है -
उदय वीर सिंह 





1 टिप्पणी:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सारगर्भित और सुन्दर रचना..