शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

गमले के फूल [आहुति ]


गमले के फूल [आहुति ]
{ यह कथा अमर सपूतों सैन्यवलों को समर्पित है ]
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बेटा - माँ शहीदों के पार्थिव शरीर हमारी इस सड़क से थोड़ी देर बाद गुजरेंगे ,कुछ घरेलु काम करती हुई माँ से उसके बड़े होते पुत्र ने कुतूहल वस् बताया
माँ - तो क्या हुआ सड़क है गुजरेंगे ही ...
बेटा - माँ क्या मैं भी अपने गमलों से कुछ फूल तोड़ कर उनको चढ़ा सकता हूँ ?
माँ - गमलों से क्यों बाजार से माँगा ले अगर शौक है तो ..
बेटा - अपने गमलों से क्यों नहीं माँ ?
माँ - ये भगवान जी को अर्पित किये जाते हैं
बेटा - शहीदों को क्यूँ नहीं ?
माँ - क्या शहीद -शहीद लगा रखा है .. शहीद आते जाते रहते हैं .भगवान नहीं बंद करो अपनी बक...बक ! आक्न्हे तरेरते हुए कहा
बेटा - अगर मैं शहीद हो जाऊँ तो भी नहीं चढायेंगी इन फूलों को ?
माँ -तूं ! तूं ! क्यों शहीद होने लगा भला ? क्या इसी दिन के लिए तुझे ऊँची से ऊँची शिक्षा का ख्वाब देख रखा है । इतनी महँगी शिक्षा का खर्च ....इतना बोझ .सारा सुखा भूल ,दर्द हम उठाते हैं ,क्या इसी लिए ?... फिर ये शब्द नहीं सुनना पसंद मुझे ..!
बेटा- माँ मुझे ये शब्द और शहीदी पसंद है
माँ - या तो तुम कायर हो या अक्षम जिसे अनुशासन और बड़ों का मान करना नहीं पता , अफसोस है कि मैं तुम्हारे जैसे बेटे की माँ हूँ
शर्म आती है मुझे तुमको अपना ...
बेटा - माफ़ी चाहता हूँ माँ ! आपका बेटा होना मेरे बस में नहीं था,पर शहीद होना मेरे बस में है ... मैं आपके कलुषित विचारों के कलंक को अवसरवादी होकर नहीं धो सकता,पर एक शहीद होकर जरुर धो सकूँगा ..आप सरदार शहीद भगत सिंह की माँ भले बन पायीं मैं सरदार शहीद भगत सिंह की माँ का बेटा जरुर बनूँगा
आज अभी खंडित करता हूँ समस्त वंधों को जिनका मुझे निर्वहन नहीं करना
माँ - ये क्या बचपना है ?
बेटा - अंतिम अकाट्य अटल निर्णय !... आपको आपके गमले के फूल
मुबारक ! मुझे शहीद अब किसी जन्म में आप से मेरी मुलाकात हो ...रब से अरदास करूँगा
उदय वीर सिंह





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