रविवार, 3 मार्च 2019

प्रारब्ध तुम्हें लिखना होगा -


निश्छल निर्भय नेह कर्म ,
प्रारब्ध तुम्हें लिखना होगा -
गंतव्य तुम्हारा है उस पार पथ शास्वत चलना होगा
पतझर बसंत संग शूल फूल वेदन मोद सहना होगा
पल का हर्ष विचलित कर देगा अनंत हर्ष गुनना होगा
जग व्यापित हो यश शौर्य शील जनमन की सुनना होगा -
जाज्वल्य तेरे नेत्रों की ज्योति
पथ दीप तुम्हें बनना होगा -
स्व विमर्श न्यून हो जाएँ सर्व विमर्श चुनना होगा
लांघ लोलुप लोभ की कारा राष्ट्र विमर्श करना होगा
राष्ट्र धर्म का मर्म हृहय हो दिक् राष्ट्र प्रेम बहना होगा
रहे अमर राष्ट्र संवेदन कर्म शिला-पट्ठ लिखना होगा -
मूक जायें भूप रूप अधिनायक अंधड़
तुम्हें अटल रहना होगा -
उदय वीर सिंह



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