हवा भी ठहर जाती, जो कहीं उसका घर होता
संवेदना बस जाती उसका जो कहीं शहर होता
जीवन प्रीत का समंदर होता डूब कर भी मोक्ष
आनंद होता मानस में न काशी न मगहर होता -
संवेदना बस जाती उसका जो कहीं शहर होता
जीवन प्रीत का समंदर होता डूब कर भी मोक्ष
आनंद होता मानस में न काशी न मगहर होता -
नीरवता ने शोर को जन्म दिया नाद कहता है
आशा ने ही निराशा को जना विषाद कहता है
कल्पना ठहर जाती किसीअभिव्यक्ति की प्राचीर
वक्त कहता है ,न महल होते, न खँडहर होता -
आशा ने ही निराशा को जना विषाद कहता है
कल्पना ठहर जाती किसीअभिव्यक्ति की प्राचीर
वक्त कहता है ,न महल होते, न खँडहर होता -
उदय वीर सिंह
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