रविवार, 21 अप्रैल 2019

हवा भी ठहर जाती ...

हवा भी ठहर जाती, जो कहीं उसका घर होता
संवेदना बस जाती उसका जो कहीं शहर होता
जीवन प्रीत का समंदर होता डूब कर भी मोक्ष
आनंद होता मानस में न काशी न मगहर होता -
नीरवता ने शोर को जन्म दिया नाद कहता है
आशा ने ही निराशा को जना विषाद कहता है
कल्पना ठहर जाती किसीअभिव्यक्ति की प्राचीर
वक्त कहता है ,न महल होते, न खँडहर होता -
उदय वीर सिंह

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