शनिवार, 18 मई 2019

जब समय अंत का .....


जब समय अंत का आता है,
याद बहुत कुछ आता है ,
चाहत समेटने की कुछ बहुत बहुत ,
पर पवन वेग उड़ा ले जाता है -
क्या खोया क्या पाया ,
निर्जन पीछे सूनापन आगे 
स्वप्न धुल धूसरित हो जाता है -
स्वप्निल गट्ठर लाद पीठ 
हो आत्ममुग्ध कर कागज के फूल 
मकरंद कहीं खो जाता है -
स्वजन पूछते कहाँ रहे 
वांछित कौन अधूरी अभिलाषा ?
नेह सनेह सम्बन्ध विखंडित 
मृग मरीचिका में दह जाता है -
कन्धों का बोझ ढोना होता है
देना प्रतिकार अनादर है ,
दोनों तट दो आँचल विस्मृत 
बाँहों का सेतु ढह जाता है -
औषधि बनकर रहना था 
मन अवसाद पूरित रह जाता है -
उदय वीर सिंह




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