शनिवार, 18 मई 2019

मैं अकिंचन ....



मैं अकिंचन.....
मैं अकिंचन अक्षरहीन
नयनन की भाषा लिखना
चाह विमर्श की होती है
प्रियतम की गाथा लिखना 
सरल हृदय का भाषी हूँ ,
भाव सरल भाषा लिखना ... ।
भाव समन्वय की गतिशील रहे
अविरल प्रवाह गति मंथर मंथर
संवाद मौन की गगन दुंदुभि
नाविक प्रयाण पथ सदा निरंतर -
स्वर प्रकोष्ठ के नाद करें
जाग्रत अनंत जिज्ञाषा लिखना -
स्पर्श मलय का अभिनंदन
होने का प्रतिपादन कर दे
यत्र तत्र बिखरे शुभ परिमल
एक बांध सूत्र सम्पादन कर दे -
बाँच सके निर्मल मन मेरा
भाष्य नवल परिभाषा लिखना ......... ।
पुण्य प्रसून आरत यश भव की
स्नेहमयी आशा लिखना .....
सरल हृदय का भाषी हूँ ,
भाव सरल भाषा लिखना ... ।
उदयवीर सिंह

3 टिप्‍पणियां:

kuldeep thakur ने कहा…


जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
19/05/2019 को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में......
सादर आमंत्रित है......

अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद

मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर काव्यात्मक प्रस्तुति सुंदर शब्दों का संयोजन सुंदर भाव रचना ।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत सुन्दर...