हमने ढोए दर्द लाखों परदेशी के लिए
देशी हो गयी बेगानी अंग्रेजी के लिए -
अपनी धरती अपना
आँगन अपने चाँद सितारे
अपनी संस्कृति अपना वैभव हैं कैसे दूर बिसारे -
हम करते बेईमानी अंग्रेजी के लिए -
राग हैं अनुपम अद्दभुत रस हैं अलंकार की आभा
तन मन में हिंदी की रसना मधु-भाव पूर्ण मर्यादा -
क्यों कलम बनी प्रतिहारी अंगरेजी के लिए -
उंच नीच से ज्यादा अंतर परदेशी ने कर डाला
भाषा अपनी रही कलपती ले राष्ट्र-प्रेम की माला-
होई अपने घर अनजानी अंगरेजी केलिए -
उदय वीर सिंह
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