बुधवार, 15 मई 2019

उद्दात भाव नभ चढ़े मंजरी ....


काव्य -प्रभा में बांची गयी मेरी एक रचना --
हाथों में हथियार नहीं
हाथों को औजार मिले
हाथों की मुट्ठी भिंची हो
हाथों को कारोबार मिले -
आँखों को आंसू क्षार नहीं
खुशियों की रसधार मिले
सौगात मिले जब आँखों को
ह्रदय हुलसता प्यार मिले -
पांवों के निचे बारूद नहीं
पुष्ट समतल आधार मिले
पांवों की दशा दिशा निश्चित
हँसता गंतव्य का द्वार मिले -
जिह्वा पर दर्प के शब्द नहीं
अमृत भावों का सार मिले
हृहय जोड़ते अनुवंध मिलें
सच्चे सौदों का व्यापार मिले -
मानस में विध्वंश का भाव नहीं
सृजन मिले सहकार मिले
उद्दात भाव से खिले मंजरी
मधु पुष्पों का संसार मिले -
उदय वीर सिंह





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