बुने हुए स्वप्नों को रंगों का धरातल दे पायें-
महक उठे जीवन समस्त स्वांसों को परिमल दे पायें -
माना की शाख- प्रसूनों के कांटे भी उग आते हैं
गंतव्य सुरक्षित पाने को पथ समतल तो दे पायें -
प्रहसन पर भाड़ों के धन और दाद मिला करते हैं
माण-शिखर के तारों को ध्वनि-करतल तो दे पायें
उदय वीर सिंह
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