गुरुवार, 11 जुलाई 2019

रुसी -भारतीय [संस्मरण ]


रुसी -भारतीय 
बेबी .... लोवा- [एक निर्मल दर्शन ]
रुसी साहित्यिक यात्रा के दौरान देश रूस के सेण्ट पीटर्स बर्ग में,शाम के समय एक मनोहारी बाग़ में खुबसूरत मौसम,वातावरण व अनुपम नैशर्गिग कृति का ,हम लोग कभी विचरण कभी बैठ कर आनंद ले रहे थे । ईश्वर और रुसीयों ने मिलकर कितना सुन्दर अप्रतिम रूस को बनाया है । 
वहां आये रुसी व अन्य नागरिकों के बीच संयोग से अपनी सौम्य पहचान INDIAN [भारतीय ] की एक प्राथमिक शिक्षक दम्पति द्वारा बिना लग लपेट के प्राप्त कर मन बहुत प्रफुल्लित हुआ । जबकि एक ओर पहचान का घोर संकट है विश्वसनीयता संदेह की ओर है ।
महत्त्व पूर्ण ये रहा की उनकी लगभग पांच वर्षीया परी सरीखी पुत्री [नाम अस्पष्ट ..बेबी लोवा ] ने जाने अनजाने बाल सुलभ आचरण से दो संस्कृतियों [ भारतीय व रुसी ] को आत्मीय बनाया । बेबी लोवा ने मुझे देख अपने दोनों हाथ जोड़ पहले नमस्ते कह कर अभिवादन किया ,व कहीं से एक पुष्प चुन कर मुझे भेंट किया । मैंने अपने हाथ जोड़ उसे नमस्ते कहा । वह बहुत खुश थी ।
उसने अपने माँ -पिता की ओर इशारा किया जो पास ही खड़े सौम्य भाव से मेरी तरफ देख दोनों हाथ जोड़ अभिवादन कर रहे थे । चेहरे पर ख़ुशी व मुस्कराहट थी । मैं उनक तरफ बढ़ा वे भी मेरे पास चलते हुए आ गए । मेरे साथ उदयपुर से मेरे सहयोगी डॉ मनोहर लाल श्रीमाली जी भी थे ।
प्राथमिक शिक्षक दम्पति से बहुत तो नहीं पर अंग्रेजी में ही यथासंभव संवाद हो सका क्यों की मुझे रुसी नहीं आती ,वे थोड़ी बहुत अंग्रेजी जानते थे ।
बातों -बातों में पता चला की वे लोग भारत व भारतीयों को बहुत प्यार करते हैं । भारतीय संस्कृति,वेश -भूषा,संगीत व फिल्मों को आकर्षक व समृद्ध मानते हैं ।
यह एक महत्वपूर्ण बात मुझे लगी कि -' हम लोग पगड़ी देख कर पहचान लेते हैं की अमुक व्यक्ति भारतीय होगा ,जबकि पगड़ी इंग्लैण्ड अमेरिका कनाडा सहित विश्व के अधिकतम देशों में सिखों द्वारा धारण की जाती है । और वे स्थायी रूप से उन देशों के निवासी भी हैं पर उनका कहना था की पगड़ी देख कर भारतीयता का अहसास होता है। मानस में इन्डियन का ही भाव आता है ।
मैंने उन्हें हिंदी गीत - मेरा जूता है जापानी मेरी ... वे खिलखिलाए और अपनी उन्मुक्त हंसी को नहीं रोक पा रहे थे... । इस गीत से वे पूर्व परिचित लगे ।
बिटिया लोवा की ख़ुशी अपार थी उसने मेरे साथ कई फोटो कराये कभी फूल के साथ ,कभी मेरे समीप आकर ... मेरे अपने बच्चों की याद बरबस छलक आई थी ...।
बेबी लोवा ने कई प्रश्न अनुत्तरित रह गए जिन्हें मैं नहीं समझ सका ..पर उसके माँ पिता की भाव भंगिमा से लगा की वो मासूम प्रश्न थे ....सिर्फ मैं मुस्करा कर ही अपनी ख़ुशी जाहिर कर सका । एक प्रश्न को
उसकी माँ ने अंग्रेजी में बताया ...
क्या आप की कोई बेटी है ?
मैं खिलखिला कर कहा -
हां ! ठीक तुम्हारे जैसी ..परी लोवा जैसी ....।
दोनों हाथ ऊपर कर वो उच्च स्वर में कुछ बोल रही थी ,,जिसे मैं नहीं समझ सका था ,पर मुझे वो पल बहुत मधुर व सगे लगे ...।
सबके चेहरों पर प्राकृतिक व आत्मीय हंसी थी ।
मैंने चलते समय उनको दस्वीदानियाँ कह कर विदा लिया ।
उधर से नमस्ते ...! नमस्ते !.. के मधुर शब्द गूंजे थे ..।
दस्वीदानियाँ और नमस्ते ' शब्द हम दोनों संस्कृतियों के लिए खास और आत्मीय हो चले थे ।
उदय वीर सिंह

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