कितने झूठ उगाओगे एक सत्य छुपाने की खातिर -
कितने झोपड़ जारोगे एक महल बनाने की खातिर -
खुले नैन के सपनों को तम,प्रकाश से क्या लेना
कितने शीश उतारोगे झूठा मान बचाने की खातिर -
जन मानस कब चाहा है ,काँटों का संसार मिले
जीवन भष्मित क्यों,बुत महान बनाने की खातिर-
उदय वीर सिंह
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