रविवार, 6 अक्तूबर 2019

देखते रहे......


देखते रहे
कागजी नाव डूबती रही
भंवर की ओर
बढती रही...
तुम असमर्थ थे या
तुम्हारा सगल ...
डगमगाती नाव का भवजल
निहितार्थ कुतूहल ....
कसमसाती अदम्य बोझ से ...
भर दिया था
आकांक्षाएं,वादों व्यतिरेकों
आवेदनों,सास्तियों,संहिताओं से
किनारे दूर मजबूर
खड़े उर्ध्व ....
डूबना ही था
कागज की थी
कागजी थी .........
हवाओं का मौजों को
समर्थन भी अनुकूल था ......

उदय वीर सिंह





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