मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019

न जाने कितने संसार हैं ......


माना कि तेरे सूरज हजार हैं ,
हम भी रोशनी के तलबगार हैं -
उनकी जमीन देश दिशा कौन ,
कौन उनके भूप,कौन सरकार हैं ?
कैसी हैं फसलें,बिरवे माली कौन,
नीर,नदिया कौन कैसे किनार हैं ?
सूरज रोशनी का किधर रह गया
हमारे घर गाँव कितने अन्हार हैं-
ढूंढने की कोशिशों में डूब जाता है दिन
ढूंढता हूँ रोज जाने कितने संसार हैं -
उदय वीर सिंह


कोई टिप्पणी नहीं: