शनिवार, 25 अप्रैल 2020

हमने संत समझा........


हमने संत समझा........
लुटेरों को हमने संत समझा ,
सिमित को हमने अनंत समझा
सफ़ेद भयानक हथियार को ,
हाथी के खाने का दन्त समझा -
तज गए आसन देव देवालय से ,
पाखंडियों की देख कर सूरत ,
धन कुबेरों को वर-महंथ समझा ,
पाखंडियों को हमने भगवंत समझा -
प्रत्येक दान कर्म त्याग अर्पण,
के पीछे छुपा राजनीतिक " हम "
बना मर्मान्तक पीड़ा का प्रतिरूप
जिसे हमने मुक्ति का संयंत्र समझा -
आंसुओं की नदी में भींगते डूबते ,
उतराते कराहते लोग हासिये पर ,
विकृत हो जाएँगी परिभाषाएं ग्रंथों की ,
राजतन्त्र हो जायेगा जिसे लोकतंत्र समझा -
उदय वीर सिंह




2 टिप्‍पणियां:

kuldeep thakur ने कहा…


जय मां हाटेशवरी.......

आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
26/04/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......

अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद

Onkar ने कहा…

सुन्दर कविता