खुश रहो कि ये धरती मुस्कराए
तेरे सुख दुःख से सरोकार रखती है
सींचा है अपने आँचल का प्यार देकर
सृजना है बहुत अधिकार रखती है -
हम एक जर्रे
हैं इसके दरबार के
उड़ते हैं लहराते
हैं और बिखरते हैं
सिसकती है हमारी उदंडताओं पर
फिर भी ममता का उपहार रखती है -
कद हमारा बौना है उसके आकार से
धृष्टताओं से उसको सदमा लगता है
उसके गहरे घाव अपनी सफलता नहीं
तेरे लिए काशी काबा हरिद्वार रखती है -
तूने दिया है विनाश के गोले बम बारूद
विद्रूप अभिशप्त निहारिकाओं का वलय
मतकर अट्टहास बैठ ज्वालामुखी के द्वार
लौटआ जया के आँचल तेरा सत्कार करती है -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर
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