शनिवार, 11 अप्रैल 2020

बसुधा तेरी ओट...

खुश रहो कि ये धरती मुस्कराए
तेरे सुख दुःख से सरोकार रखती है
सींचा है अपने आँचल का प्यार देकर
सृजना है बहुत अधिकार रखती है -

हम एक जर्रे हैं इसके दरबार के
उड़ते हैं लहराते हैं और बिखरते हैं
सिसकती है हमारी उदंडताओं पर
फिर भी ममता का उपहार रखती है -

कद हमारा बौना है उसके आकार से
धृष्टताओं से उसको सदमा लगता है
उसके गहरे घाव अपनी सफलता नहीं
तेरे लिए काशी काबा हरिद्वार रखती है -

तूने दिया है विनाश के गोले बम बारूद
विद्रूप अभिशप्त निहारिकाओं का वलय
मतकर अट्टहास बैठ ज्वालामुखी के द्वार
लौटआ जया के आँचल तेरा सत्कार करती है -

उदय वीर सिंह