सोमवार, 18 मई 2020

उपेक्षा ..नरसंहार जैसा है.....

श्रमजीवियों की उपेक्षा मत करो नरसंहार जैसा है
आपका प्रयास भंवर में टूटी पतवार जैसा है-
पानी पर लकीर नहीं बनती, लाख चाहो जी ,
मत सुनाओ संकल्प पत्र बासी अखबार जैसा है -
तेरी दुत्कारों ने शरीर ही नहीं आत्मा को भी रौंदा है
सम्मान में दिया कागजी फूल तलवार जैसा है -
जानवर बना दिया ,घर और घाट के बीच का ,
रिश्ता रियाया से सेवक का नहीं जमींदार जैसा है -
खून रिसते पांवों से लिखे दस्तावेजो को पढ़ा होता
गाडी में जुता रिश्तों को ढोता आदमी नादार जैसा है -
मुंह छुपाकर बोल देना कि हम सब तुम्हारे साथ हैं ,
उनकी जिंदगी और कफ़न तेरे टिसू पेपर के आकार जैसा है -
रोपड़ी पोलियोग्रस्त माँ पीठ पर बालक लिए सफ़र में
फोटो के बदले मौत दे देते ,तेरा भी रंग सरकार जैसा है -
आश्वासन फिर प्रतीक्षा ,खाली हाथ, कहाँ जाएँ ,
रोटी नहीं मौत तो तय है सफ़र अंतिम संस्कार जैसा है
उदय वीर सिंह


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