उन्नयन (UNNAYANA)
शनिवार, 20 जून 2020
मानस का कोलाहल ...
मानस
का
कोलाहल
स्वर
से
वंचित
होता
है
,
जन
-
मानस
का
कोलाहल
भीड़
से
मंचित
होता
है
-
वर्जनाओ
का
खंडित
हो
जाना
,
कोलाहल
में
संचित
होता
है
-
कुमुक
धूल
-
धूसरित
हो
जाती
,
विष
तो
किंचित
होता
है
-
उदय
वीर
सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें