संवेदना मर गयी तो त्राशदी ही हाथ आएगी।
आज सत्ता की जंग कल मौत मुस्करायेगी।
वक्त की आहटों को जब हमने सुना नहीं,
रेत पर कितना लिखो लहर बहाले जाएगी।
जब भी उगेंगे मिट्टी में ही उगेंगे फ़सलो फूल,
पत्थरों की ये हवस जीवन कहाँ ले जाएगी।
इंसानियत की हवा से वैर इतना क्यों है जी,
आदमी से आदमीकी नफरत क्या बनाएगी।
उदय वीर सिंह।
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