चाय की सियासत नहीं,ये रोटी की हिमायतों में हैं।
बख्तरबंद-गाड़ी,महलों में नहीं पसीनेकीआयतों में हैं।
मुत्तासिर हैं सिर्फ़ कागज़ों में तंजीमों के अक्लमंद,
ये आज भी मुंतजिर किसी हुक्काम की इनायतों के हैं।
शर्मिन्दा भला कौन होगा इनकी बेबसी गुरबती पर,
भूख से भूख तक का नसीब इनकी रिवायतों में है।
उदय वीर सिंह।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें