.......✍️
जा के झीलों में बदरा बरसता रहा।
जलता सहरा पियासा तरसता रहा।
दर्द था मर्ज़ का,बोझ था कर्ज़ का,
टूट मनके से मोती बिखरता रहा।
रातभीअजनवी दिन तो पहले से था,
अश्क़ ढ़लते रहे दिल सिसकता रहा।
भूख से आज रुख़सत एक दुनियां हुई,
काफ़िला जश्न का कल गुजरता रहा।
आज पैग़ाम आया कि वो दर बंद है,
जिस मंजिल की हसरत ले चलता रहा।
उदय वीर सिंह।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें