मंगलवार, 12 अक्तूबर 2021

पुरस्कारों में रह गए...









......पुरस्कारों में रह गए✍️

गुल और गुलसितां के किरदारों में रह गए।

शायर ईश्क और मुश्क के दयारों में रह गए।

रोती रही इंसानियत दर-बदर कूँचे दर कूँचे

बने थे चमन के माली दरबारों में रह गए।

मंदिरो मस्जिद की आग आशियाने जल गए,

पैरोकारी थीआवाम की पुरस्कारों में रह गए।

आबाद गुलशन ही परजीवियों को भाता है,

गद्दार तख़्तों पर फरजंद दीवारों में रह गये।

पाकीज़ा शहर में नापाक मंडियों के मजरे,

दे खून पसीना श्रमवीर कर्ज़दारों में रह गए।

उदय वीर सिंह।