मैंने दिल की कही,जिंदगी की कही।
सादगी की कही ,आदमी की कही।
आशियाना सितारों में मांगा नहीं,
मैं जमीं का रहा हूँ जमीं की कही।
वास्ता जिनको था वो महल के हुए,
हमने मजलूम की बेकसी की कही।
मेरी आँखों ने चश्मों से देखा नहीं,
हमने देखा कमीं तो कमीं की कही।
दर्द क्या है शराफ़त का कैसे कहें,
अबआंखों से गायब नमीं की कही।
अंगारों में फूलों को देखा जले
उठी जो कलम दरिंदगी की कही।
उदय वीर सिंह।
1 टिप्पणी:
वाह
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