रविवार, 26 दिसंबर 2021

शहादते पीरां...



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शहादते पीरां 

( 27 दिसंबर 1705 )

फरजन्दों की शहादत पर अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि...।

अमर शहादत बाबा जोरावर सिंहजी 7- वर्ष 11-माह और बाबा फतेह सिंह जी 5-वर्ष 11-माह की।

स्थान - सरहिंद (आज का फतेह गढ़ साहिब)

दौर- मुगलिया सल्तनत (औरंगजेब)

अमर वलिदानी माजी के पन्नों से -

" मौत रोई जगत रोया ,धरती रोई गगन रोया "

1-बाबा जोरावर सिंह जी 

जन्म [28 Nov 1695 आनंदपुर साहिब 

शहादत 27 Dec 1705 सरहिंद ] 

2- बाबा फतेह सिंह जी

जन्म  [ 22 Dec 1699 आनंदपुर साहिब

शहादत ( 27Dec 1705 सरहिंद )

संक्षिप विवरण-

माता जी - गुरुमाता सुंदरी जी।

दादी माँ - गुजर कौर जी 

पिता - गुरु गोबिन्द सिंह जी

दादा जी- गुरु तेग बहादुर जी महाराज। 

गुनाह - 

धर्म से सिक्ख होना,

देशभक्ति ,कौम का वफादार सिपाही होना अपने संस्कारों पर अडिग रहना , इस्लाम स्वीकार नहीं करना । मां- पिता के संस्कारों ( सिक्खी) मूल्यों की अंतिम स्वांस तक रक्षा करना । 

सजा - 

मृत्यु-दंड  (जिंदा दीवार में चुनवा कर )

संकल्प - धर्म की फतहि

संदेश - वाहेगुरु जी दा खालसा वाहे गुरु जी दी फतेह।

आदर्श - गुरु गोबिन्द सिंह जी 

पहचान -पंच ककार 

सूत्र वाक्य - देहि शिवा वर मोहे है शुभ कर्मन ते कबहुँ न डरो ..।

कर्म - धर्म की स्थापना ,ज़ोर जुल्म का प्रतिकार।

- विश्व के सबसे कम उम्र के वलिदानी जिनका सूबा सरहिंद की अदालत में मुकदमा चला जिसमें अपनी वकालत वे स्वयं कर रहे थे।

- दादी माँ ( गूजर कौर जी )के पावन सानिध्य में रह अपने संस्कारों दायित्वों और खाई कसमों को सहर्ष प्राण देकर निभाया । यह अजूबा शौर्य  पूरी दुनियां के इतिहास में कहीं नहीं मिलता ।

    पौष की रात ( दिसम्बर 20/12/1705)गुरु-परिवार सिरसा नदी तट से धर्म रक्षार्थ खेरू - खेरू हो गया । माँ ,पिता , पुत्र,भाई  घर सगे संबंधियों से आततायी मुगल सल्तनत व पहाड़ी हिन्दू राजाओं के चौतरफा हमले के कारण,गुरु -पारिवार का एक दूसरे से बिछोड़ा हो गया ।

   नदी सिरसा तट से दशम पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज अपने दो बड़े पुत्रों बाबा भाई अजित सिंह ,बाबा जुझार सिंह जी व चालीस गुरु सिक्खों सहित चमकौर सहिब की कच्छी गढ़ी की ओर गए। जहां 22/12/1705 को अकल्पनीय अदम्य शौर्य के देवों ने चमकौर की जंग में युग-बोधक शहीदी पाई। सद्गुरु दशमेश पिता शांत अविचलित हो धर्म के  अग्नि कुंड में अपने लालों की समिधा दे रहे थे । युग समय स्तब्ध था ,जुल्म ही नहीं सितमगर भी आवाक खौफ़जदा थे। साक्ष्य स्वरूप उस स्थान पर गुरुद्वारा चमकौर साहिब आज विराजमान हैं।

  माता गुजरी जी अपने दो पोतों बाबा जोरावर सिंह उम्र छह साल और बाबा फतेह सिंह उम्र नौ साल को  साथ लेकर गुरु-घर के रसोईया पंडित गंगू के पहल पर इन अद्द्भुत अप्रतिम फरजदों के साथ कोतवाली मोरिंडा स्थित उंसके घर को चलीं,जहां गद्दार गंगू ने धन और ईनाम,पद के लोभ में माता जी व गुरु पुत्रों को अगली सुबह माता जी की दी अमानत को हड़प वजीर खान की गारद से दादी समेत दोनों पोतों को गिरफ्तार करवा दिया। गुरु परिवार व गुरु सिक्खों पर मुगलिया सल्तनत ने करोड़ों के इनाम रखे थे।

   अकथनीय यातना अंतहीन पीड़ा मानसिक संत्रासों के बावजूद बेनजीर फरजर्दों ने इस्लाम कुबूल नहीं किया।  वज़ीर खां ने इन गुरुपुत्रों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दिया। दिसम्बर 26/12/1705 को इन्हें दीवार में जिंदा चिनवा दिया गया।

   इस पावन स्थल पर आज गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब साक्ष्य स्वरूप विराजमान हैं।

   यह मर्मान्तक सूचना पाकर ठंढे सर्द 140 फ़ीट ऊंचे बुर्ज में कैद दादी माँ ने अपने प्राण त्याग इह लोक से चलाना कर गए।

  अमर वलिदानियों ने अपने देश धर्म वचन कर्तव्य संस्कार मूल्यों के रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति दे दी ,परंतु पथ से विचलित नहीं हुए धर्म ध्वज अटल अडोल रहा।

    न झुका सके जालिम औरंगजेब का फरमान, 

न ही सरहिंद का सूबेदार नवाब वजीर खान की अदालत न गद्दार गंगू पंडित की शिनाख्त ,न ही सुच्चा नन्द की गवाही व मौत की सिफारिस,न ही काजी का फतवा ,न ही सुख ऐश्वर्य,न जीवन का लोभ ही । 

गर्व है हम उनके वारिस हैं ।

उदय वीर सिंह ।

1 टिप्पणी:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…
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