शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

कलम कुछ और कहती है..


 





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कागज़ कुछ और कहता है,

कलम कुछ और कहती है।

अजमत में सुख़नवर की, 

सुखन कुछ और कहती है।

किराए की ईमारत में हुए

बहुत जलसे किराए पर,

महफ़िल कुछ और कहती है,

नज़म कुछ और कहती है।

कहीं भूला मुसाफ़िर रास्ता, 

या भुलाता है जमाने को,

रास्ते कुछ और कहते हैं,

मंजिल कुछ और कहती है।

आख़िर कांटों की अदालत में 

मुल्तवी हो गए मसले,

ज़ख्म कुछ और कहते हैं,

चुभन कुछ और कहती है।

उदय वीर सिंह।

1 टिप्पणी:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…
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