शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

शज़र कह रहा ...


 




.....हमको मालूम नहीं ✍️

शाख पर हों रहीं सारी सरगोशियां,

शज़र कह रहा हमको मालूम नहीं।

बह रही है हवा,ले ज़हर हर गली,

शहर कह रहा हमको मालूम नहीं।

रास्ते में मिले हमसफ़र जो गए,

सफ़र कह रहा हमको मालूम नहीं।

रात लंबी अंधेरी कबकी रुखसत हुई,

सहर कह रहा हमको मालूम नहीं।

कैसे गुलशन में गुलआफताबी हुए,

नज़र कह रही हमको मालूम नहीं।

आज अख़बार की सुर्खियों में जो है,

ख़बर कह रही हमको मालूम नहीं।

उदय वीर सिंह।

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